!! राधे राधे !!
श्रावण मास का महत्व:-

स्कंद पुराण के अनुसार- मानव कल्याण के हित के लिए एक बार सनतकुमार ऋषि ने भगवान शिवजी से पूछा कि हे प्रभु ! श्रावण मास आपको इतना प्रिय क्यों है? तब भगवान शिवजी ने अपने जीवन की उस अलौकिक घटना का वर्णन बताया। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां और हजारों पुत्र थे। राजा दक्ष की पुत्री ‘सती’ की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने अपने पिता इच्छा विरूद्ध भगवान शिवजी से विवाह किया था। प्रजापति दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने एक ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था जिसको प्रजापति दक्ष पसंद नहीं करता था।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार- मरकंडू ऋषि का पुत्र मार्कण्डेय अल्प आयु था। इस कारण ऋषियों ने उसे
शिव मंदिर में जाकर महामृत्युंजय मंत्र जपने की सम्मति प्रदान की। मार्कण्डेय ऋषियों
के वचनों में श्रद्धा रखते हुए सावन माह में ही घोर तप करने लगे। अंत समय पर मार्कण्डेय
के प्राण हरने हेतु यमराज आये परन्तु महामृत्युंजय की शरण में गए हुए को कौन छू सकता
है? महामृत्युंजय मंत्र की शक्तियों के कारण मृत्यु के देवता यमराज को भी लौटना पड़ा।
भगवान शिवजी की आराधना के कारण मार्कण्डेय ने दीर्घ आयु पायी और उन्होंने ही मार्कण्डेय
पुराण की रचना भी की।
संपूर्ण
महामृत्युंजय मंत्र:-
ॐ
हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव
बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ
स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

दानवों ने कोतुहलवश वासुकी नाग के मुँह को एवं देवताओं ने पूँछ की ओर का स्थान ले लिया। इस प्रकार समुद्र मंथन आरम्भ हुआ। समुद्र मंथन के उपरांत सर्वप्रथम कालकूट नामक विष निकला, जिससे सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान भोलेनाथजी ने उसे अपने कंठ में समाहित कर लिया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। विषपान के उपरांत महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। अतः यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने का विशेष महत्त्व है।
श्रावण सोमवार व्रत विधि:-
श्रावण
मास में भगवान शिवजी
को प्रसन्न कर अपनी मनोकामनाएं
पूरी करने के लिए
श्रावण के प्रत्येक सोमवार
का विशेष महत्व है। शिव की
उपासना व व्रत करने
से भगवान शिवजी जल्दी प्रसन्न हो जाते है
और मनचाही मनोकामनाएं पूरी कर देते
हैं।
व्रत
के नियम:-
श्रावण
मास के सोमवार का
मनवांछित फल की प्राप्ति
हेतु श्रेष्ठ व्रत है, व्रत
साधारणतय दिन के तीसरे
पहर के उपरांत पूर्ण
होता है। व्रतधारी को
ब्रह्म मुर्हत में उठना चाहिए
साथ ही इस दिन
ब्रह्मचर्य का पालन करना
चाहिए। सुबह उठकर पानी
में कुछ बूंद गंगा
जल एवं काले तिल
डालकर नहाना चाहिए। इस व्रत मे
शिवजी पार्वती का पूजन करना
चाहिए। सोमवार के व्रत तीन
प्रकार के माने गये
हैं- साधारण प्रति सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार।
अतः इस प्रकार तीनो
व्रत की विधि एक
जैसी ही होती है।


१.
सर्वप्रथम भगवान शिवजी और माता पार्वतीजी
का अभिषेक जल या गंगाजल
करें उसके उपरांत पंचामृत
स्नान गाय का कच्चा
दूध, दही, घी, शहद,
चने की दाल, गुड़,
काले तिल, आदि कई
सामग्रियों से अभिषेक करना
चाहिए और फिर पुनः
जल या गंगाजल से
शुद्धोदक स्नान करना चाहिए।
२.
तत्पश्चात भगवान को सिंदूर एवं
चावल से तिलक करना
चाहिए।
३.
तत्पश्चात श्वेत पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग आदि अर्पण
कर पूजन करना चाहिए।
४.
तदुपरांत भगवान शिव का पंचाक्षरी
मंत्र "ऊँ नमः शिवाय"
अथवा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना
चाहिए।
५.
शिव-पार्वती की पूजा के
बाद सावन के सोमवार
की व्रत कथा सुननी
चाहिए।
६.
भगवान शिवजी आरती करने के
बाद भोग लगाएं और
घर परिवार में बांटने के
पश्चात स्वयं ग्रहण करें।
७.
पूजन के उपरांत ब्राह्मण
(आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) एवं निर्धन व्यक्ति
को भोजन एवं दान-दक्षिणा देकर विदा करना
चाहिए।
८.
आप इस व्रत मे
फलाहार या पारण का
कोई भी खास नियम
रख सकते हैं। परन्तु
याद रखें केवल एक
समय ही भोजन करना
हैं।
इस
प्रकार श्रद्धापूर्वक व्रत करने से
भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती
प्रसन्न होकर मनवांछित फल
देते हैं।
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-अतुल कृष्ण
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!! Radhe Radhe !!
Importance of Shravan Mass, Fasting Law and Rule
Importance of Shravan month: -


The Entire Mahamrityunjaya Mantra: -
Om Haun Joon Sah Om Bhoorbhuvah Svah
Om Tryambakan Yajaamahe Sugandhin Pushtivardhanam
Urvaarukamiv Bandhanaan Mrtyormuksheey Maamrtaat
Om Svah Bhuvah Bhooh Om Sah Joon Haun Om !!

Law of Fasting on Shravan:-
Every month of Shravan has special significance to fulfill the desires of Lord Shiva in the month of Shravan. By worshiping and fasting Shiva, Lord Shiva is very happy and fulfills the desired desires.
Laws of fast: -
The month of Shravan is the best fasting for the desired result of the month, the fast is usually completed after the third day of the day. The fasting should rise in the Brahma muhrah and at the same time should follow Brahmacharya. Wake up in the morning and take a few drops of water in the water and take bath and black sesame should take bath. In this vow, Shivaji Parvati should be worshiped. There are three types of vowels on Monday - simple Monday, Somay Pradosh and sixteen Monday. Therefore, the method of fasting is similar in all three ways.
1. First of all, Lord Shiva and Mother Parvatiji's anointing water or Ganga water, after that, the Panchamrit bath should be anointed with raw milk of milk, curd, ghee, honey, gram dal, jaggery, black sesame, etc., and again with water or gangaajal Shanker should wash.
2. Then God should tinkle with vermilion and rice.
3. Then there should be worship by offering white flowers, bill papers, datura, Bhang etc.
4. After this, Lord Shiva should chant the panchakshari mantra "Oon Namah Shiva" or Mahamrityunjaya Mantra.
5. After worship of Shiva-Parvati, the Swan should listen to the fast story of Monday.
6. After worshiping Lord Shiva after doing aarti and enjoying it after dividing the family in the family, take it yourself.
7. After worship, Brahmin (Acharya, Vipra, Dwij, Dwijottam) and poor person should depart with food and donation.
8. You can keep any special rule of fruit or practice in this fast. But remember to eat only one time.
In this way, by offering devotional worship, Lord Bholenath and Mata Parvati happily give them desired results.
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-Atul Krishan