अहोई
अष्टमी ( व्रत विधि, नियम एवं कथा)
अहोई
अष्टमी का उत्तम पर्व
उत्तर भारत के उत्तरप्रदेश,
पंजाब, राजस्थान और गुजरात में
मुख्य रूप से मनाया
जाता है। भारत ही
नहीं वरन विदेशों में
भी धर्म प्रेमी इस
व्रत को मनाते है।
संतान के जीवन में
सुख-समृद्धि की कामना हेतु
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी
को अहोई अष्टमी का
व्रत किया जाता है। इस
दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं।
यह व्रत खासतौर से
संतान प्राप्ति और संतान की
खुशहाली के लिए रखा
जाता है। इस दिन
अहोई माता की पूजा
की जाती है। माताएं
अहोई अष्टमी के व्रत में
दिन भर उपवास रखती
हैं और सायंकाल तारे
दिखाई देने के समय
अहोई माता का पूजन
किया जाता है। तारों
की पूजा कर तारों को
करवा से अर्ध्य भी
दिया जाता है। यह
अहोई गेरू आदि के
द्वारा दीवार पर बनाई जाती
है अथवा किसी मोटे
वस्त्र पर अहोई काढ़कर
पूजा के समय उसे
दीवार पर टांग दिया
जाता है। इस दिन
धोबी मारन लीला का
भी मंचन होता है,
जिसमें श्री कृष्ण द्वारा
कंस के भेजे धोबी
का वध प्रदर्शन किया
जाता है।
अहोई
अष्टमी व्रत विधि
1.
अहोई अष्टमी व्रत के दिन
प्रात: उठकर स्नान करें
और पूजा पाठ करके
अपनी संतान की दीर्घायु एवं
सुखमय जीवन हेतु कामना
करते हुए, मैं अहोई
माता का व्रत कर
रही हूँ, ऐसा संकल्प
करें।
2.
अहोई माता मेरी संतान को
दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे।
माता पार्वती की पूजा करें।
3.
अहोई माता की पूजा के
लिए गेरू से दीवार
पर अहोई माता का
चित्र बनाएँ और साथ ही
सेह और उसके सात
पुत्रों का चित्र बनाएँ।
4.
संध्या काल में इन चित्रों
की पूजा करें।
5. अहोई पूजा में एक अन्य
विधान यह भी है
कि चांदी की अहोई बनाई
जाती है जिसे सेह
या स्याऊ कहते हैं। इस
सेह की पूजा रोली,
अक्षत, दूध व भात
से की जाती है।
पूजा चाहे आप जिस
विधि से करें लेकिन
दोनों में ही पूजा
के लिए एक कलश
में जल भर कर
रख लें।
6.
पूजा के बाद अहोई माता
की कथा सुने और
सुनाएं।
7.
पूजा के पश्चात् सासू-मां के
पैर छूएं और उनका
आर्शीवाद प्राप्त करें।
8.
तारों की पूजा करें और
जल चढ़ायें।
9. इसके पश्चात् व्रती अन्न जल ग्रहण करें।
"तारों को करवे से अर्ध्य देने के उपरांत उस करवे (कलश) को भरकर पूर्व दिशा में रख दें तथा दीपावली के दिन सुबह को अपने बच्चों को इस कलश के जल से स्नान करायें। इस प्रकार यह क्रिया अत्यंत शुभ मानी जाती है।"- अतुल कृष्ण
अहोई
अष्टमी का उजमन
जिस
सौभाग्यवती स्त्री के पुत्र हुआ
हो या पुत्र का
विवाह हुआ हो उस
स्त्री को अहोई माता
का उजमन करना चाहिए।
उस दिन एक थाली
में सात जगह चार-चार पूड़ियों पर
थोड़ा-थोड़ा सीरा (हलवा)
रखें। इसके
साथ एक तीयल (साड़ी)
तथा उस पर श्रद्धा
अनुसार रूपये रखकर थाली के
चारों ओर हाथ फेरकर
श्रद्धा और सम्मान के
साथ सासू के पाँव
पकड़कर उन्हें दें। सासू जी
साड़ी और रुपयों को
अपने पास रख लें
बाकी हलवा और पुरियों
को बाँट दें। इसको
ही बायना कहते हैं। साथ
ही थोड़ा बायना अपनी
बहन-बेटी के घर
भी भिजवा दें।
अहोई
अष्टमी व्रत प्रथम कथा
प्राचीनकाल
में किसी नगर में
एक साहूकार रहता था। उसके
सात पुत्र थे। दीपावली से
पहले साहूकार की स्त्री घर
की लीपा-पोती के
लिए मिट्टी लेने को खदान
में गई और खदान
में कुदाल से जब मिट्टी
खोदने लगी तो देवयोग
से उस ही जगह
एक सेह की मांद
थी। सहसा उस स्त्री
के हाथ से कुल्हाड़ी
सेह के बच्चे के
लग गयी जिससे सेह
का बच्चा उसी क्षण मर
गया। यह हत्या हुई
देखकर उस स्त्री को
बहुत दुःख हुआ। परन्तु
अब क्या हो सकता
था? वह स्त्री पश्चाताप
करती हुई अपने घर
आ गई।
कुछ
दिन के बाद उस
स्त्री का बच्चा मर
गया। फिर दूसरा और
तीसरा अर्थात एक वर्ष में
उसके सातों लड़के मर गये।
इस पर वह स्त्री
रात-दिन अत्यंत दुखित
रहने लगी। एक दिन
उसने अपने पड़ोस की
स्त्रियों से रो-रोकर
कहा कि मैने जान-बूझकर कोई पाप नहीं
किया, हाँ एक बार
मैं मिट्टी खोदने को खदान में
गई थी। जब मिट्टी
खोदने में सहसा मेरी
कुदाली से एक सेह
का बच्चा मर गया था,
तभी से एक वर्ष
के भीतर-भीतर सातों
लड़के मर गये।
यह
सुनकर उन स्त्रियों ने
धैर्य देते हुए कहा
कि तुमने जो यह बात
हम सबको सुनाकर पश्चाताप
किया है इससे तेरा
आधा पाप तो नष्ट
हो गया। सो अब
तुम उसी अष्टमी (भगवती) की शरण लेकर
सेह और सेह के
बच्चों का चित्र बनाकर
उसकी पूजा किया करो
और छमा याचना करो।
ईश्वर की कृपा से
तुम्हारा समस्त पाप धुल जाएगा
और तुम्हें पहले की तरह
से ही पुत्रों की
प्राप्ति हो जाएगी। उन
सबकी बात मानकर उस
स्त्री ने कार्तिक मास
की कृष्ण पक्ष की अष्टमी
को व्रत किया तथा
प्रत्येक वर्ष व्रत व
पूजन करती रही। फिर
उसे ईश्वर की कृपा से
सातों पुत्र प्राप्त हुए। तभी से
इस व्रत की परंपरा
चली आ रही है।
अहोई
अष्टमी व्रत द्वितीय कथा
प्राचीन
काल में किसी नगर में एक साहुकार रहता था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहुकार
की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के
लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहुकार की बेटी
जहां मिट्टी खोद रही थी उस स्थान पर स्याऊ (सेह) अपने बेटे के साथ रहती थी। मिट्टी
खोदते समय गलती से स्याऊ का एक बच्चा मर गया।
स्याऊ माता ने कहा कि तूने मेरा बच्चा मार कर मुझे निपुत्र कर दिया इसलिए में तेरी
कोख बांधूंगी। स्याऊ के इस तरह के श्राप से साहूकार की बेटी बड़ी दुखी हुई और अपनी
सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करने लगी कि तुमने से कोई मेरे बदले अपनी कोख बंधवा
लें। छः भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इनकार कर दिया। परन्तु सबसे छोटी भाभी सोचने
लगी की यदि मैं अपनी ननद का कहना नहीं मानूँगी तो कहीं सासु जी मुझसे रुष्ठ न हो जायें।
तब ऐसा विचार कर उसने ननद के बदले अपनी कोख बँधवाली। इससे जब उसके लड़का हुआ तो वह सातवें
दिन मर गया। इसी प्रकार उसके सात पुत्र हुए और
एक-एक कर सात पुत्रों की मृत्यु हो गई।
तब एक दिन उसने ज्योतिषी को बुलवाकर
पूछा की महाराज जाने क्या बात है, मेरे जो संतान होती है वो सातवें दिन मर जाती है,
सो इसका क्या कारण है? तब पंडित जी बोले कि देवी तुम सुरही गाय की पूजा किया करो। क्योंकि
सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है वो तेरी कोख छोड़े तो तभी तुम्हारा बच्चा जी सकता
है।
इसके बाद से वह बहु नित्य प्रति प्रातः काल उठ करके चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई
करके अनेक प्रकार से सेवा करती। गऊ माता यह देखकर कि साहूकार के बेटे की बहु नित्य
प्रति मेरी बहुत सेवा करती है। गऊ माता उससे बोली कि तू मेरी बहुत सेवा करती है, इसलिए
मेरी आत्मा तुझसे बहुत प्रसन्न है, अतः मांग मुझसे क्या माँगती है? साहूकार के बेटे
की बहु बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध राखी है, सो
आप कृपा करके अपनी भायली से मेरी कोख खुलवा दें। उस दुखयारी की यह बातें सुन कर गौ माता
बोली अच्छा ठीक है, मैं तेरे लिए यह प्रयत्न करुँगी। एक दिन गौ माता उसे साथ ले सात समुन्दर पार अपनी भायली के पास चल दी। मार्ग
में धुप बहुत कड़ी पड़ रही थी, वे दोनों एक पेड़ के नीचे छाय में बैठ गयीं। थोड़ी देर में
वहाँ एक साँप आया और उसी वृक्ष पर गरुड़ पंखनी ने बच्चे दे रखे थे वो सर्प उन बच्चों
को डसने लगा। तब साहूकार की बहु ने उस सर्प को मार करके ढाल के निचे दबा दिया और उन
बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की
बहु के चोंच मरने लगी। तब वह बहु बोली कि मैंने ही तो तेरे बच्चों की सर्प को मरकर रक्षा
की है और तू मेरी ही दुश्मन हो गई। साहूकार की बहु की बात सुन करके गरुड़ पंखनी प्रसन्न
होकर बोली तूने मेरे बच्चे बचाये हैं, इसलिए मॉंग क्या माँगती है? तब साहूकार की बहु
बोली कि हमें सात समुन्दर पार स्याऊ माता के पास पंहुचा दें। तब गरुड़ पंखनी ने उन
दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर लम्बी उड़ान भरकर उसे सात समुन्दर पार स्याऊ माता के पास
पहुँचा दिया।
स्याऊ माता अपनी भायली गौ माता को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और बोली भायली
आ आज तो बहुत दिनों में मिली है। फिर बोली कि बहन मेरे सिर में जुएँ बहुत पड़ गई हैं।
तब सुरही गऊ बोली कि मेरे साथ मेरी भगतनी आई है ये तेरी सब जुएँ निकल देगी। आज्ञा
पाते ही साहूकारनी ने
स्याऊ माता की चुन-चुनकर सब जुएँ निकाल
दीं। स्याऊ माता बोली कि
तूने आज मुझे बहुत
आराम दिया है, इसलिए
मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, सो आज
जो चाहे सो माँग
ले, मैं तुझे दूंगीं।
तब साहूकारनी बोली कि वचन
दो तो माँगूँ। स्याऊ
माता बोली- अच्छा वचन दिया और
कहा की यदि मैं
अपने वचन से फिरूंगी
तो धोबी कुण्ड की
कंकरी हो जायूँ। तब
साहूकार की बहु बोली
कि मेरी कोख तुम्हारे
पास बँधी पड़ी है,
सो कृपा करके खोल
दो। उसकी यह बात
सुनकर स्याऊ माता बोली तूने
तो मुझे ठग लिया।
मैं तेरी कोख कभी
नहीं खोलती, परन्तु अब तो खोलनी
ही पड़ेगी। जा तेरे घर
तुझे तेरे सात लड़के
और उन सातों की
सात बहुएं मिल जाएँगी। तू
घर जा करके मेरे
सात उजमन करियों। सात
अहोई बहकर सात कढ़ाई
कर दीजो।
यह सुन जब
वह लौट करके घर
पहुंची तो वहाँ सात
बेटे और सातों की
बहुएं घर बैठे मिले।
यह देखकर वह बहुत
खुश हुई। तभी उसने
सात अहोई बनाई और
सात उजमन किये तथा
सात ही कढ़ाई करी।
दिवाली के दिन उनकी
जिठानियाँ कहने लगीं कि
जल्दी-जल्दी अपनी चौका पूजा
कर लो अन्यथा छोटी
बहु बच्चों की याद करके
रोने-धोने लगेगी। थोड़ी
देर में उन्होंने अपने
बच्चों से कहा कि
चाची के घर जाकर
के देख के आओ
कि आज वो अभी
तक क्यों नहीं रोई? बच्चों
ने आकर कहा कि
चाची अहोई बना रही
है और वो तो
खूब उजमन कर रही
है। यह सुनते ही
उनकी जेठानियाँ दौड़कर उसके घर गई
और जाकर कहा कि
तूने अपनी कोख कैसे
छुड़वाई है? वह बोली
कि तुमने तो अपनी कोख
बंधवाने से इंकार कर
दिया पर मैंने अपनी
छोटी ननद का ख्याल
करके अपनी कोख बांधली
थी। अब स्याऊ माता
ने मुझ पर कृपा
करके मेरी कोख खोल
दी, जिस प्रकार मेरी
कोख खोली है उसी
प्रकार संसार की सभी नारियों
की कोख खोल देना।
अतः हे स्याऊ माता
सभी सुनने वाली तथा हुंकारा
भरने वालियों के सब परिवार
की नारियों की कोख खोल
देना। यही हम सबकी
तुमसे विनती है।
अहोई
अष्टमी की आरती
जय
अहोई माता जय अहोई
माता।
तुमको
निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता।।1 ।।
ब्रम्हाणी
रुद्राणी कमला तू ही
है जग दाता।
जो
कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।।2 ।।
तू
ही है पाताल बसंती
तू ही है सुख
दाता।
कर्म
प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।3 ।।
जिस
घर थारो वास वही
में गुण आता।
कर
न सके सोई कर
ले मन नहीं घबराता।।4 ।।
तुम
बिन सुख न होवे
पुत्र न कोई पता।
खान
पान का वैभव तुम
बिन नहीं आता।।5 ।।
शुभ
गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन
चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता।।6 ।।
श्री
अहोई माँ की आरती
जो कोई गाता।
उर
उमंग अति उपजे पाप
उतर जाता।।6 ।।
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-अतुल कृष्ण