Wednesday, November 7, 2018

दीपावली पर विशेष (व्रत विधि, नियम एवं कथा)

दीपावली पर विशेष (व्रत विधि, नियम एवं कथा)

     दीपावली हिंदू धर्म का सबसे पवित्र त्योहार है। दीपावली उत्सव पुरे भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है। भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी दिवाली बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। दिवाली या दीपावली का शाब्दिक अर्थ है दीयों को श्रृंखला में लगाना। मान्यता है कि यह दीये अंधकरा पर प्रकाश, असत्य पर सत्य की जीत को दर्शाते हैं। दिवाली को अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, बंगाली में 'दीपाबॉली' नेपाली में 'तिहार' और मारवाड़ी में 'दियाळी'।

दीपावली व्रत विधि

     दीपावली व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, ऐसा संकल्प करें। रोली, इत्र, कलावे, पान, सुपारी, फल-फूल, दूध, दही, घी, धुप, दीप, कपूर, शहद, दियासलाई, जल-पात्र, गणेश-लक्ष्मी, लाल वस्त्र, मिठाई, नारियल, सिन्दूर, मेवा एवं गंगा जल, आगे अपनी वंश-परंपरा के अनुसार अन्य वस्तुएं।

     कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली व्रत एवं पूजन किया जाता है। यह त्यौहार सभी जातियों का होता है क्योंकि श्री महालक्ष्मी जी को प्रसन्न करने को इसे सभी मानते हैं। इसमें गणेश-लक्ष्मी के पूजन सा साथ-साथ भगवान विष्णु, कुबेर, इन्द्र और सरस्वती एवं ठाकुर जी की भी पूजा की जाती है। व्यापारी वर्ग वही-खाते कमल-दावत आदि की भी पूजा करते हैं। उपरोक्त लिखे समस्त देवी-देवताओं का षोडष प्रकार से पूजन किया जाता है। खील-बताशे, मीठा आदि का भोग लगाना चाहिए एवं हवन आदि करना चाहिए। लक्ष्मी जी का अपने सोने-चाँदी के जेवरों तथा नकद रूपये आदि भी रखकर पूजन करना चाहिए। चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

     26 छोटे दीपक जलाकर खील-बताशों से पूजन करना चाहिए। लक्ष्मी जी और गणेश जी के पास दो बड़े दीपक जलने चाहिए। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें। मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। इस दिन तेल के दीपक से काजल पालकर सभी को लगाना चाहिए। पूजन के उपरांत अधिक से अधिक श्रद्धा-भाव से माता-पिता को भेंट देकर उनको प्रणाम करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। साथ ही इस दिन ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। पूजन के पश्चात् स्त्री अन्न जल ग्रहण करें। प्रातः उठकर औरतों को पूप बजाकर दरिद्र निकलना चाहिए। इस प्रकार विधि से पूजन करने से घर में लक्ष्मी जी पधारती है।

 दीपावली का महत्व 

1. जब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके राजा बलि को पटल भेजा था तब देवराज इंद्रा ने प्रसन्न होकर घी के दीप जला करके दीपावली मनाई थी।
2. इसी दिन समुन्द्र मंथन करने पर लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और श्री विष्णु भगवन को अपना पति बनाया था।
3. जब भगवान श्री राम लंका विजय करके अयोध्या में लौटने पर उनका राज्य-तिलक हुआ था तो अयोध्या वासियों ने घर-घर घी के दीप जला करके दीपावली मनाई।
4. इसी दिन श्री वीर विक्रमादित्य जी ने विक्रमी सम्वत का निर्माण किया।
5. इसी दिन महर्षि दयानद सरस्वती जी को स्वर्ग का अधिकार मिला था तो समस्त देवताओं ने स्वर्ग में घी के दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

गणेश जी की कथा

      एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही ग़रीब और अंधी थीं। उसका एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी सम्मुख प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले। बुढ़िया बोली- मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू? तब गणेशजी बोले - अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले। तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- गणेशजी कहते हैं तू कुछ मांग ले बता मैं क्या मांगू? पुत्र ने कहा- मां! तू धन मांग ले। बहू से पूछा तो बहू ने कहा- नाती मांग ले। तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी ज़िन्दगी आराम से कट जाए।

     इस पर बुढ़िया बोली- यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें। यह सुनकर तब गणेशजी बोले- बुढ़िया मां! तुने तो हमें ठग दिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा। और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया माँ ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया माँ को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

लक्ष्मी जी की कथा

     प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार था, उसकी एक लड़की थी। वह नित्य पीपल देवता की पूजा करती थी। उसने देखा की श्री महालक्ष्मी जी उसी पीपल से निकला करती है।  एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा कि मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूँ इस लिए तू मेरी सहेली बनना स्वीकार कर लें। लड़की ने कहा की मैं अपने माता-पिता से पूछ कर बताऊँगी । यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी। दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया।

     दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगे। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई। अपने घर में लक्ष्मी जी उसका दिल खोल कर स्वागत किया। उसकी खूब खातिर की। उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे। मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई। उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी।

     साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर। चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गया। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई। और साहूकार बहुत अमीर बन गया।

लक्ष्मी जी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम को निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता।।
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।
दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता।।
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता।।
जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता।।
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता।।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता।।

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-अतुल कृष्ण

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