षट्तिला एकादशी का महात्म
तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलदाता च भोक्ता च षट्तिलाः पापनाशनाः।। -पद्म पुराण - खण्ड ६, श्लोक २१ अध्याय ०४२
अर्थात् - तिलमिश्रित जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का जलपान, तिल का भोजन और तिल का दान ये छः तिल के प्रयोग पापनाशक हैं ।
विधि:- सर्वप्रथम स्वच्छ स्नान करें। उसके उपरांत तिल को जल में डालकर पुनः स्नान करें। उसके उपरांत तिल के उबटन का एक भाग दाहिने हाथ का प्रयोग करते हुए मस्तक से ह्रदय तक, फिर हाथ धोकर के दूसरा भाग बाये हाथ का प्रयोग करके नाभि से कमर तक लगाना चाहिए, फिर हाथ धोकर के तीसरा भाग घुटने से पैर तक लगाना चाहिए। इस प्रकार पुरे शरीर में तिल लगाना चाहिए। उसके उपरांत पुनः तीर्थराज प्रयागराज जल से सुद्धोदक स्नान करें। तिल से होम करे, तिल मिलाया हुआ जल पिये, सवा सेर तिल का दान करें और तिल को भोजन करें।
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- दासानुदास अतुल कृष्णदास एडवोकेट
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