Thursday, August 19, 2021

गीत गोविन्द

महाकवि जयदेव कृत गीत गोविन्द की एक अष्टपदी 

|| जयदेव कृत गीत गोविन्द ||

 

चन्दन-चर्चित-नील-कलेवर पीतवसन-वनमाली

केलिचलन्मणि-कुण्डल-मण्डित-गण्डयुग-स्मितशाली

हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे विलासिनी विलसति केलिपरे 1

पीन-पयोधर-भार-भरेण हरिं परिरभ्य सरागं।

गोपवधूरनुगायति काचिदुदञ्चित-पञ्चम-रागम 2

कापि विलास-विलोल-विलोचन-खेलन-जनित-मनोजं।

ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदन-वदन-सरोजम्र 3

कापि कपोलतले मिलिता लपितुं किमपि श्रुतिमूले।     

चारु चुचुम्ब नितम्बवती दयितं पुलकैरनुकूले 4

केलि-कला-कुतुकेन काचिदमुं यमुनावनकुले।

मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले॥5

करतल-ताल-तरल-वलयावलि-कलित-कलस्वन-वंशे।

रासरसे सहनृत्यपरा हरिणा युवति: प्रशंससे 6

श्लिष्यति कामपि चुम्बति कामपि कामपि रमयति रामां।

पश्यति सस्मित-चारुतरामपरामनुगच्छति बामां 7

श्रीजयदेव-भणितमिदमभुत-केशव-केलि-रहस्यं।

वृन्दावन-विपिने ललितं वितनोतु शुभानि यशस्यम् 8


जयदेव कृत गीत गोविन्द | मलूकपीठाधीश्वर श्रीराजेंद्रदास जी महाराज | प्रस्तुतकर्ता गायक अतुल कृष्ण


|| संस्कृत पाठ एवं हिंदी अनुवाद ||

 

चन्दन-चर्चित-नील-कलेवर पीतवसन-वनमाली

केलिचलन्मणि-कुण्डल-मण्डित-गण्डयुग-स्मितशाली

हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे विलासिनी विलसति केलिपरे ॥1॥ ॥ ध्रुवम्र॥

candana-carcita-nīla-kalevara-pīta-vasana-vana-mālī ||

keli-calan-mai-kuṇḍala-maṇḍita-gaṇḍa-yuga-smita-śālī ||1||

haririha mugdha-vadhū-nikare vilāsini vilāsati kelī-pare ||dhruvapada||

अनुवाद:- हे विलासिनी श्रीराधे! देखो! पीतवसन धारण किये हुए, अपने तमाल-श्यामल-अंगो में चन्दन का विलेपन करते हुए, केलिविलासपरायण श्रीकृष्ण इस वृन्दाविपिन में मुग्ध वधुटियों के साथ परम आमोदित होकर विहार कर रहे हैं, जिसके कारण दोनों कानों में कुण्डल दोलायमान हो रहे हैं, उनके कपोलद्वय की शोभा अति अद्भुत है। मधुमय हासविलास के द्वारा मुखमण्डल अद्भुत माधुर्य को प्रकट कर रहा है ॥1॥

Translation:- O Vilasini Sriradhe! See! Wearing a Pitavasan, smearing sandalwood in his black-brown limbs, Kelivilasparayan Sri Krishna is residing in this Vrindavipin with the enchanted brides in great ecstasy, due to which the coils in both the ears are oscillating, the grace of his cupoladya, is exceedingly wonderful. The face is revealing the wonderful melody through sweet gusto. 


पीन-पयोधर-भार-भरेण हरिं परिरभ्य सरागं।

गोपवधूरनुगायति काचिदुदञ्चित-पञ्चम-रागम ॥2॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

pīna-payodhara-bhāra-bharea hari parirabhya sarāgam ||

gopa-vadhūranugāyati kācid udañcita-parama-rāgam ||2||

अनुवाद:- देखो सखि! वह एक गोपांगना अपने पीनतर पयोधर-युगल के विपुल भार को श्रीकृष्ण के वक्षस्थल पर सन्निविष्टकर प्रगाढ़ अनुराग के साथ सुदृढ़रूप से आलिंगन करती हुई उनके साथ पञ््चम स्वर में गाने लगती है।

Translation:- Look friend! That one gopangana embracing the bountiful weight of her peter Payodhara-couple on the chest of Sri Krishna, firmly embracing them with deep affection, begins to sing with him in the fifth voice.


कापि विलास-विलोल-विलोचन-खेलन-जनित-मनोजं।

ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदन-वदन-सरोजम्र 3  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

kāpi vilāsa-vilola-vilocana-khelana-janita-manojam ||

dhyāyati mugdha-vadhūradhikaṃ madhusūdana-vadana-sarojam ||3||

अनुवाद:- देखो सखि! श्रीकृष्ण जिस प्रकार निज अभिराम मुखमण्डलकी श्रृंगार रस भरी चंचल नेत्रों की कुटिल दृष्टि से कामिनियों के चित्त में मदन विकार करते हैं, उसी प्रकार यह एक वरांगना भी उस वदनकमल में अश्लिष्ट (संसक्त) मकरन्द पान की अभिलाषा से लालसान्वित होकर उन श्रीकृष्ण का ध्यान कर रही है।

Translation:- Look friend! Just as Shri Krishna causes madness in the minds of the kaminis with the devious eyes of the fickle eyes filled with the make-up of the face of their own pleasure, similarly this one bridegroom is also meditating on that Shri Krishna after being engrossed in the desire of the vulgar (consecrated) Makarand paan in that lotus flower.


कापि कपोलतले मिलिता लपितुं किमपि श्रुतिमूले।     

चारु चुचुम्ब नितम्बवती दयितं पुलकैरनुकूले ॥4॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

kāpi kapola-tale militā lapitu kim api śruti-mūle ||

cāru cucumba nitambavatī dayita pulakair anukūle ||4||

अनुवाद:- वह देखो सखि! एक नितम्बिनी (गोपी) ने अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण के कर्ण (श्रुतिमूल) में कोई रहस्यपूर्ण बात करने के बहाने जैसे ही गण्डस्थल पर मुँह लगाया तभी श्रीकृष्ण उसके सरस अभिप्राय को समझ गये और रोमाञ्चित हो उठे। पुलकाञ्चित श्रीकृष्ण को देख वह रसिका नायिका अपनी मनोवाञ्छा को पूर्ण करने हेतु अनुकूल अवसर प्राप्त करके उनके कपोल को परमानन्द में निमग्न हो चुम्बन करने लगी।

Translation:- Look at that friend! As soon as a Nitambini (Gopi) put her face on the Gandasthal on the pretext of saying some mysterious thing in the Karna (Shrutimool) of his life-saving Shri Krishna, only then Shri Krishna understood his sarcastic meaning and got thrilled. Seeing Pulkanchit Shri Krishna, that Rasika heroine, getting a favorable opportunity to fulfill her desire, started kissing his forehead engrossed in ecstasy.


केलि-कला-कुतुकेन च काचिदमुं यमुनावनकुले।

मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले ॥5॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

keli-kalā-kutukena ca kācid amuṃ yamunā-jala-kūle ||

mañjula-vañjula-kuñja-gataṃ vicakarṣa kareṇa dukūle ||5||

अनुवाद:- सखि! देखो, यमुना पुलिन पर मनोहर वेतसी (वञ्जुल या वेंत) कुञ्ज में किसी गोपी ने एकान्त पाकर कामरस वशवर्त्तिनी हो क्रीड़ाकला कौतूहल से उनके वस्त्रयुगल को अपने हाथों से पकड़कर खींच लिया।

Translation:- Friend! Look, in the beautiful Vetsi (Vanjul or Vent) Kunj on the Yamuna bridge, a gopi, having found solitude, became Kamaras Vashvartini, with curiosity, grabbed his clothes couple with his hands and pulled.


करतल-ताल-तरल-वलयावलि-कलित-कलस्वन-वंशे।

रासरसे सहनृत्यपरा हरिणा युवति: प्रशंससे ॥6॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

kara-tala-tāla-tarala-valayāvali-kalita-kalasvana-vaṃśe ||

rāsa-rase saha-ntya-parā haria-yuvatī-praśaśase ||6||

अनुवाद:- हाथों की ताली के तान के कारण चञ्चल कंगण-समूह से अनुगत वंशीनाद से युक्त अद्भुत स्वर को देखकर श्रीहरि रासरस में आनन्दित नृत्य-परायणा किसी युवती की प्रशंसा करने लगे।

Translation:- Seeing the wonderful voice consisting of the descendants from the playful group, because of the clap of the hands, Srihari started praising a young woman, a dance-parayan, rejoicing in the Rasaras.


श्लिष्यति कामपि चुम्बति कामपि कामपि रमयति रामां।

पश्यति सस्मित-चारुतरामपरामनुगच्छति बामां ॥7॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

śliyati kām api cumbati kām api kām api ramayati rāmām ||

paśyati sa-smita-cāru-tarām aparām anugacchati vāmām ||7|

अनुवाद:- श्रृंगार-रस की लालसा में श्रीकृष्ण कहीं किसी रमणी का आलिंगन करते हैं, किसी का चुम्बन करते हैं, किसी के साथ रमण कर रहे हैं और कहीं मधुर स्मित सुधा का अवलोकन कर किसी को निहार रहे हैं तो कहीं किसी मानिनी के पीछे-पीछे चल रहे हैं।

Translation:- In the longing for makeup-rasa, Shri Krishna embraces some beautiful person, kisses someone, is enjoying with someone and is looking at someone after seeing the sweet smile Sudha, and somewhere behind a mani - Running backwards.


श्रीजयदेव-भणितमिदमभुत-केशव-केलि-रहस्यं।

वृन्दावन-विपिने ललितं वितनोतु शुभानि यशस्यम् ॥8॥  [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे...]

śrī-jayadeva-bhaitam idam adbhuta-keśava-keli-rahasyam ||

vndāvana-vipine lalita vitanotu śubhāni yaśasyam ||8||

अनुवाद:- श्रीजयदेव कवि द्वारा रचित यह अद्भुत मंगलमय ललित गीत सभी के यश का विस्तार करे। यह शुभद गीत श्रीवृन्दावन के विपिन विहार में श्रीराधा जी के विलास परीक्षण एवं श्रीकृष्ण के द्वारा की गयी अद्भुत क्रीड़ा के रहस्य से सम्बन्धित है। यह गान वन बिहारजनित सौष्ठव को अभिवर्द्धित करने वाला है।

Translation:- May this wonderful melodious fine song composed by the poet Shree Jayadeva expand the fame of all. This auspicious song is related to the mystery of the luxury test of Shri Radha ji and the wonderful play performed by Shri Krishna in Vipin Vihar of Sri Vrindavan. This anthem is going to promote the beauty of forest Bihar.

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-अतुल कृष्णदास

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