!! राधे राधे !!
अध्यात्म क्या
है
?
गीता
के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप
अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा
गया है |
"परमं
स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते
"|
अध्यात्म
का अर्थ है अपने
भीतर के चेतन तत्व
को जानना, मनना और दर्शन
करना है | आत्मा परमात्मा
का अंश है यह
तो सर्विविदित है | जब इस
सम्बन्ध में शंका या
संशय,अविश्वास की स्थिति अधिक
क्रियमान होती है तभी
हमारी दूरी बढती जाती
है और हम विभिन्न
रूपों से अपने को
सफल बनाने का निरर्थक प्रयास
करते रहते हैं जिसका
परिणाम नाकारात्मक ही होता है
|
परमात्मा
के असीम प्रेम की
एक बूँद मानव में
पायी जाती है जिसके
कारण हम उनसे संयुक्त
होते हैं किन्तु कुछ
समय बाद इसका लोप
हो जाता है और
हम निराश हो जाते हैं,सांसारिक बन्धनों में आनंद ढूंढते
ही रह जाते हैं
परन्तु क्षणिक ही ख़ुशी पाते
हैं |
जब
हम क्षणिक संबंधों,क्षणिक वस्तुओं को अपना जान
कर उससे आनंद मनाते
हैं,जब की हर
पल साथ रहने वाला
शरीर भी हमें अपना
ही गुलाम बना देता है
| हमारी इन्द्रियां अपने आप से
अलग कर देती है
यह इतनी सूक्ष्मता से
करती है - हमें महसूस
भी नहीं होता की
हमने यह काम किया
है ?
जब
हमें सत्य की समझ
आती है तो जीवन
का अंतिम पड़ाव आ जाता
है व पश्चात्ताप के
सिवाय कुछ हाथ नहीं
लग पाता | ऐसी स्थिति का
हमें पहले ही ज्ञान
हो जाए तो शायद
हम अपने जीवन में
पूर्ण आनंद की अनुभूति
के अधिकारी बन सकते हैं
|हमारा इहलोक तथा परलोक भी
सुधर सकता है |
अब
प्रश्न उठता है की
यह ज्ञान क्या हम अभी
प्राप्त कर सकते हैं
? हाँ ! हम अभी जान
सकते हैं की अंत
समय में किसकी स्मृति
होगी, हमारा भाव क्या होगा
? हम फिर अपने भाव
में अपेक्षित सुधार कर सकेंगे | गीता
के आठवें अध्याय श्लोक संख्या आठ में भी
बताया गया है,
यंयंवापि स्मरन्भावं
त्यजत्यन्ते
कलेवरम्
|
तं तमेवैति
कौन्तेय
सदा
तद्भाव
भावितः
||
अर्थात-"हे कुंतीपुत्र अर्जुन
! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस
भी भाव को स्मरण
करता हुआ शरीर का
त्याग करता है, उस-उस को
ही प्राप्त होता है ;क्योंकि
वह सदा उसी भाव
से भावित रहता है |"
एक
संत ने इसे बताते
हुए कहा था की
सभी अपनी अपनी आखें
बंद कर यह स्मरण
करें की सुबह अपनी
आखें खोलने से पहले हमारी
जो चेतना सर्वप्रथम जगती है उस
क्षण हमें किसका स्मरण
होता है ? बस उसी
का स्मरण अंत समय में
भी होगा | अगर किसी को
भगवान् के अतिरिक्त किसी
अन्य चीज़ का स्मरण
होता है तो अभी
से वे अपने को
सुधार लें और निश्चित
कर लें की हमारी
आँखें खुलने से पहले हम
अपने चेतन मन में
भगवान् का ही स्मरण
करेंगे |बस हमारा काम
बन जाएगा नहीं तो हम
जीती बाज़ी भी हार
जायेंगे |
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-अतुल
कृष्ण
!! Radhe Radhe
!!
What is
spirituality?
In the eighth chapter of the Gita, the nature of the soul is
called spirituality.
"Parman
Swabhodytmmuchyte".
Spirituality means knowing, reflecting and seeing the inner
consciousness inside. The soul is a part of God, it is well known. When there
is doubt or suspicion in this regard, the situation of disbelief is more
curious, then our distance increases and we keep making a vicious attempt to
make ourselves successful by various forms, which results in negative.
A drop of the immense love of God is found in human beings,
because of which we are united with them but after some time it disappears and
we become frustrated, remain hungry for worldly constraints, but are happy to
be transient |
When we experience momentary relations, transient objects and
enjoy them, while the body that lives with every moment also makes us our own
slaves. Our senses separate us from ourselves; it does so with subtlety - do
not we even realize that we have done this work?
When we understand the truth, then the last stop of life
comes and no hand is taken except repentance. If we already have knowledge of
such a situation, then we can become the official of the experience of full
bliss in our life. Our religion and parlok can also improve.
Now the question arises that we can get this knowledge right
now? Yes ! We can now know who will be remembered in the end times, what will
be ours? We will be able to make the necessary corrections again. The eighth
chapter of the Gita is also mentioned in verses 8.
Yamyamvapi Smrnbhavm Tyjataynte Katevaram|
Tuvm Tmeveti Kontey Sada Tabhdav
Bhavith:||
That is, "Arjun of Kuntiapunu, this person who gives up
the body remembrance in the time of the end, gets it only because he is always
feeling the same emotion."
One saint said, stopping all his eyes, and remembering that
before we open our eyes in the morning, which one is the first of our
consciousness that we are reminded of in the moment? Only that will be
remembered in the end times. If someone remembers anything other than God, then
from now on, they should improve themselves and make sure before we open our
eyes, we will remember God in our conscious mind, otherwise our work will be
done otherwise we will The winning losers will also lose.
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-Atul Krishan
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