Saturday, August 21, 2021

रक्षाबंधन पर विशेष

रक्षाबंधन

        राखी को पहले 'रक्षा सूत्र' कहते थे। रक्षा सूत्र को बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है जो वेद के संस्कृत शब्द 'रक्षिका' का अपभ्रंश है। मध्यकाल में इसे राखी कहा जाने लगा। राखी को श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिए राक्ष कहने के पूर्व पहले इसे श्रावणी या सलूनो कहते थे। इसी तरह प्रत्येक प्रांत में इसे अलग अलग नामों से जाना जाने लगा है। जैसे दक्षिण में नारियय पूर्णिमा, बलेव और अवनि अवित्तम, राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। रामराखी इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है।

        रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा वैदिक काल से रही है जबकि व्यक्ति को यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर सू‍त का धागा जिसे 'कलावा' या 'मौली' कहते हैं- बांधा जाता था। रक्षा बंधन के अलावा भी अन्य कई धार्मिक मौकों पर आज भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है। यही रक्षा सूत्र आगे चलकर पति-पत्नी, मां-बेटे और फिर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया। रक्षा बंधन के दिन बहनों का खास महत्व होता है। विवाहित बहनों को भाई अपने घर बुलाकर उससे राखी बंधवाता है और उसे उपहार देता है रक्षा बंधन पर बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। पहले सूत का धागा होता था, फिर एक फुंदा बांधने का प्रचलन हुआ और बाद में पक्के धाके पर फोम से सुंदर फुलों को बनाकर चिपकाया जाने लगा जो राखी कहलाने लगी। वर्तमान में तो राखी के कई रूप हो चले हैं। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है।

रक्षासूत्र का इतिहास:-

        प्राचीनकाल से ही रक्षाबंधन मुख्यत: हिन्दुओ का त्यौहार रहा है। कुछ मुख्य कथा प्रचलित हैं। राखी के त्योहार का एक पौराणिक मंत्र है। रक्षाबंधन का मंत्र है:-

"येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।"

        इस मंत्र की रचना कैसे हुई इससे जुड़ी कथा है कि, विष्णु भगवान ने वामन बनकर राजा बलि से दान में सब कुछ मांग लिया। राजा बलि को जब भगवान की चाल का ज्ञान हुआ तब उसने वामन भगवान से वरदान मांगा कि हे भगवान आप मेरे साथ पाताल में निवास करें। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

        विष्णु भगवान राजा बलि के साथ पाताल चले गए। इससे माता लक्ष्मी दुःखी हो गई और राजा बलि को दिए वरदान के बंधन से भगवान को मुक्त करवाने के उपाय सोचने लगीं। माता लक्ष्मी वेष बदलकर राजा बलि के पास गयी और राजा बलि को अपना मुंह बोला भाई बना लिया।

        सावन पूर्णिमा के दिन बलि को देवी ने राखी बांधा। राजा बलि ने जब देवी से राखी बंधने के बदले उपहार मांगने को कहा तो देवी ने भगवान विष्णु को वरदान के बंधन से मुक्त करने का वचन मांग लिया। बलि ने भगवान को वरदान से मुक्त कर दिया और माता लक्ष्मी के साथ बैकुण्ठ लौट आए। राजा बलि को राखी बांधकर लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बंधन से मुक्त करावाया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है। रक्षा सूत्र के इसी महत्व के कारण परंपरागत तौर पर राखी का त्योहार सदियों से मनाया जा रहा है। इसी घटना को रक्षाबंधन के मंत्र के रूप में रचा गया।

रक्षाबंधन कथा-1

        एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा- 'हे अच्युत! मुझे रक्षाबंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा तथा दुख दूर होता है।' भगवान कृष्ण ने कहा- हे पांडव श्रेष्ठ! एक बार दैत्यों तथा सुरों में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्षों तक चलता रहा। असुरों ने देवताओं को पराजित करके उनके प्रतिनिधि इंद्र को भी पराजित कर दिया। ऐसी दशा में देवताओं सहित इंद्र अमरावती चले गए। उधर विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। उसने राजपद से घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में आएँ तथा देवता मनुष्य यज्ञ-कर्म करें। सभी लोग मेरी पूजा करें। 

        दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ-वेद, पठन-पाठन तथा उत्सव आदि समाप्त हो गए। धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा। यह देख इंद्र अपने गुरु वृहस्पति के पास गए तथा उनके चरणों में गिरकर निवेदन करने लगे- गुरुवर! ऐसी दशा में परिस्थितियाँ कहती हैं कि मुझे यहीं प्राण देने होंगे। तो मैं भाग ही सकता हूँ और ही युद्धभूमि में टिक सकता हूँ। कोई उपाय बताइए। वृहस्पति ने इंद्र की वेदना सुनकर उसे रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया गया।

"येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।"

        इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बाँधकर युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया। 'रक्षाबंधन' के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई। राखी बाँधने की प्रथा का सूत्रपात यहीं से होता है।

रक्षाबंधन कथा-2

        एक बार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई तथा खून की धार बह निकली। यह सब द्रौपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बाँध दिया फलस्वरूप खून बहना बंद हो गया। कुछ समय पश्चात जब दुःशासन ने द्रौपदी की चीरहरण किया तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षाबंधन की महत्ता प्रतिपादित करता है।

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-अतुल कृष्णदास

Raksha Bandhan

        Rakhi was earlier called 'Raksha Sutra'. The Raksha Sutra is colloquially called Rakhi which is an aberration of the Sanskrit word 'Rakshika' of Vedas. In medieval times it came to be called Rakhi. Rakhi is celebrated on the full moon of the month of Shravan, so before being called Rakshasa, it was earlier called Shravani or Saluno. Similarly, it has come to be known by different names in each province. For example, in the South, it is customary to tie Nariyaya Purnima, Balev and Avani Avittam, in Rajasthan Ramrakhi and Chudarakhi or Loomba. In this Ramrakhi, there is a yellow splatter on the red thread.


The tradition of tying the thread of protection has been there since the Vedic period, when a person was tying a thread of yarn called 'Kalava' or 'Mauli' on the wrist during yagya, war, hunting, new resolve and religious rituals. Apart from Raksha Bandhan, on many other religious occasions, the thread of protection is tied even today. This Raksha Sutra later became a symbol of the love of husband-wife, mother-son and then brother-sister. Sisters have special significance on the day of Raksha Bandhan. Brother invites married sisters to his house and ties Rakhi to them and gives them gifts. On Raksha Bandhan, sisters tie Rakhi to their brother. First there was a thread of yarn, then there was a practice of tying a knot and later on a strong thread, beautiful flowers were made and pasted from the foam, which came to be called Rakhi. At present there are many forms of Rakhi. Rakhi can range from a cheap item like raw yarn to colorful artefacts, silk thread, and expensive item like gold or silver.

History of Rakshasutra:-

        Rakshabandhan has been mainly a festival of Hindus since ancient times. Some main stories are popular. There is a mythological mantra for the festival of Rakhi. The mantra of Rakshabandhan is :-

"Yen badho balirraja danavendro mahabalah.

Ten tvambhivadhnami raksha ma chal ma chalah."

        There is a story related to how this mantra was composed that, Lord Vishnu became Vamana and asked for everything in donation from King Bali. When King Bali came to know about the tricks of the Lord, he asked for a boon from Lord Vamana that Lord, you should reside with me in Hades. According to the scholars of Dharmashastra, this means that while tying the thread of protection, the Brahmin or the priest tells his host that the Rakshasutra by which the mighty kings of the demons were tied in the bond of sacrifice, i.e., were used in religion, by the same thread I I bind you, that is, I commit you to religion. After this, the priest tells the Raksha Sutra that O Rakshasa, you remain stable, remain stable. In this way the purpose of the Raksha Sutra is to inspire and use the Brahmins for religion to their hosts.

        Lord Vishnu went to Hades with King Bali. Due to this, Mother Lakshmi became sad and started thinking of ways to free the Lord from the bondage of the boon given to King Bali. Mother Lakshmi changed her disguise to King Bali and made King Bali his brother.

        On the day of Sawan Purnima, the goddess tied a rakhi to Bali. When King Bali asked the goddess to ask for a gift instead of tying a rakhi, the goddess asked for a promise to free Lord Vishnu from the bondage of boon. Bali freed the Lord from the boon and returned to Baikuntha with Mother Lakshmi. By tying a rakhi to King Bali, Lakshmi freed Lord Vishnu from bondage. While leaving, Lord Vishnu granted a boon to King Bali that he would reside in Hades for four months every year. This four month is known as Chatumas which is from Devshayani Ekadashi to Devuthani Ekadashi to Devuthani Ekadashi. Due to this importance of Raksha Sutra, traditionally the festival of Rakhi is being celebrated for centuries. This incident was composed as the mantra of Rakshabandhan.

Rakshabandhan Story-1

        Once Yudhishthira asked Lord Krishna- 'O Achyuta! Tell me the story of Rakshabandhan, which removes the evil and misery of human beings. Lord Krishna said- O best of Pandavas! Once a war broke out between the demons and the suras and this war continued for twelve consecutive years. The Asuras defeated the gods and defeated their representative Indra too. In such a condition Indra along with the deities went to Amravati. On the other hand, the conqueror Daityaraj took all the three worlds under his control. He declared from the throne that Indradev should not come to the meeting and that gods and humans should not perform yagya-karma. May all people worship me.

        With this order of the demon king, the Yagya-Vedas, reading-learning and festivals etc. ended. With the destruction of religion, the power of the gods started decreasing. Seeing this, Indra went to his guru Jupiter and fell at his feet and started requesting - Guruvar! In such a situation, the circumstances say that I have to give my life here. I can neither run nor survive on the battlefield. Tell me some solution. Hearing the pain of Indra, Brihaspati asked him to do protection legislation. On the morning of Shravan Purnima, the defense legislation was performed with the following mantra.

"Yen badho balirraja danavendro mahabalah.

Ten tvambhivadhnami raksha ma chal ma chalah."

        On the auspicious occasion of Shravani Purnima, Indrani took the thread of defense by getting the dvijas to do swastivachan and tied it on Indra's right wrist and sent them to fight in the battlefield. Due to the effect of 'Rakshabandhan', the demons ran away and Indra was victorious. The tradition of tying Rakhi originates from here.

Rakshabandhan Story-2

        Once Lord Krishna got hurt in his hand and a stream of blood came out. All this was not seen by Draupadi and she immediately tore the pallu of her sari and tied it in Krishna's hand, as a result of which the bleeding stopped. After some time, when Dushasana ripped Draupadi, Shri Krishna paid the favor of this bond by raising a rag. This episode also shows the importance of Rakshabandhan.

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-Atul Krishnadas


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